ऐसा ही एक मामला है बिहार की रहने वाली दीपिका (बदला हुआ नाम) का
जिन्हें इस खौफ़नाक शोषण से तब गुज़रना पड़ा जब वो महज़ सात साल की थीं.
दीपिका
बताती हैं, ''लोग अक्सर कहते हैं कि उन्हें अपने बचपन में लौटना है, लेकिन
मुझे दुबारा अपना बचपन नहीं चाहिए. मुझे उससे डर लगता है. मुझे आज तक
अफ़सोस है कि मैं कुछ नहीं कह पाई.''
''मैं सात साल की थी जब मेरे
साथ वो सब शुरू हुआ. वो हमारे घर और दुकान पर कई सालों से काम करते थे.
मेरे जन्म से भी पहले से. घरवालों को उन पर पूरा भरोसा था. दुकान में जब
कोई नहीं होता तो वो मुझे अपनी गोद में बिठाते और सहलाने लगते. मुझे अच्छा
तो नहीं लगता था, लेकिन समझ ही नहीं आता था कि वो क्या कर रहे हैं.'' उन्हें लेकर मेरा डर और बढ़ता गया. मैं उनके पास नहीं आना चाहती थी.
लेकिन, मम्मी कभी खाना देने तो कभी उन्हें बुलाने उनके कमरे में भेज
देती.''
''मैं कहती थी कि अंकल के पास नहीं जाना, लेकिन घरवालों को
कारण समझ नहीं आता था. उन्हें लगता कि बच्ची हूं तो ऐसे ही कुछ भी बोल देती
हूं. लेकिन मैं लाख चाहकर भी ये पूरी बात नहीं बोल पाती थी. सही शब्द, सही
तरीका मैं कभी ढूंढ नहीं पाती.''
डॉक्टर प्रवीण त्रिपाठी भी बताते हैं कि बच्चों के मामले बड़ों से कहीं
ज़्यादा मुश्किल होते हैं. उन्हें शारीरिक अंगों के नाम, सेक्शुअल
एक्टिविटी से जुड़े शब्द नहीं पता होते. इसलिए बच्चे कहते हैं कि वो अंकल
अच्छे नहीं हैं, उनके पास नहीं जाना, वो गंदे हैं. मां-बाप को ऐसे इशारों
को समझना चाहिए.
वह बताते हैं कि बड़ी लड़कियों को इन मामलों में शर्म भी महसूस होती है. उन्हें लगता है कि उनके कैरेक्टर पर सवाल उठने लगेंगे.
अगर बच्चों की बात न समझी जाए तो इसका असर पूरी ज़िंदगी पर पड़ सकता है.
डॉक्टर
प्रवीण ने बताया, ''यौन उत्पीड़न के शिकार लोग डिप्रेशन में जा सकते हैं.
कई बार वो ज़िंदगी भर उस वाकये को नहीं भूल पाते. उन्हें सेक्शुअल
डिसऑर्डर हो सकता है. आत्मविश्वास ख़त्म हो जाता है.''
दीपिका ने भी धीरे-धीरे अपने रिश्तेदारों के पास जाना कम कर दिया था.
उन्होंने
बताया, ''धीरे-धीरे मैं घर आने वाले मेहमानों से दूरी बनाने लगी. कोई अंकल
या मामा-चाचा भी आते तो मैं उनसे दूर रहती. उनके छूने या गोद में लेने से
ही मुझे वो अंकल याद आ जाते. हर छूना ग़लत लगने लगा था.''
''इसका
नतीजा ये हुआ कि मम्मी-पापा मुझे डांटने लगे. मैं एक गंदी बच्ची बन गई जो बड़ों की इज्ज़त नहीं करती. उन्होंने जानने की कोशिश ही नहीं की कि मैं
क्या सोचती हूं. मुझे लगता है कि बड़ों के दिमाग़ में दूर-दूर तक ये बात
नहीं होती कि बच्चों के साथ भी ऐसा हो सकता है. वो हर व्यवहार को बचपना समझ
लेते हैं. ''
मैं चुप रही और दो साल तक ये झेलती रही. फिर जब अंकल
को अपने गांव लौटना पड़ा तो जैसे मुझे कैद से आज़ादी मिल गई. अब भी लगता है
कि मम्मी-पापा को कुछ बताऊंगी तो उन्हें बुरा लगेगा और अब वो कुछ कर भी
नहीं सकते.
क्या करें माता-पिता
डॉक्टर
प्रवीण कहते हैं, ''हमारे समाज में समस्या ये है कि सेक्स जैसे मसलों पर
बात नहीं होती. मां-बाप ख़ुद इन बातों को बहुत कम समझ पाते हैं. बच्चों को
सबसे पहले ये भरोसा होना चाहिए कि उनका शिकायत करना सुरक्षित है. इसके बाद
उन्हें डांट नहीं पड़ेगी. इसलिए हमेशा ऐसा माहौल बनाना चाहिए जिससे बच्चे
अपनी परेशानी आसानी से ज़ाहिर कर सकें. ये बात हर उम्र के बच्चे के लिए
लागू होती है. इन सब में सेक्स एजुकेशन सबसे ज़्यादा ज़रूरी है.
मिसाल के तौर पर सीरिया में देखा जा सकता है. अमरीका लाख चाहता रहा कि
सीरियाई राष्ट्रपति बशर अल-असद को सत्ता से बाहर किया जाए, लेकिन रूसी
समर्थन ने उन्हें बचा लिया. अब दुनिया भले ही दो ध्रुवीय नहीं है, लेकिन कई
मामलों में रूस और चीन आज भी अमरीकी नेतृत्व को चुनौती देते दिखते हैं.
रूस
यूँ तो भारत का पारंपरिक दोस्त रहा है, लेकिन उसकी क़रीबी हाल के वर्षों
में चीन से बढ़ी है. चीन और भारत के बीच 1962 में एक युद्ध हो चुका है और
भारत को शर्मनाक हार का सामना करना पड़ा था. दोनों देशों के बीच आज भी सीमा
विवाद का समाधान नहीं हो पाया है. ऐसे में रूस और चीन की दोस्ती को भारत
कैसे देखता है? चीन और रूस की दोस्ती का असर भारत पर क्या पड़ेगा?
भारत
और अमरीका में क़रीबी के कारण भी रूस और भारत के बीच दूरियां बढ़ी हैं.
स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टिट्यूट के अनुसार 2008-2012 तक भारत के
कुल हथियार आयात का 79 फ़ीसदी रूस से होता था जो पिछले पांच सालों में
घटकर 62 फ़ीसदी हो गया है.
वहीं कल तक जो पाकिस्तान हथियारों की
ख़रीद अमरीका से करता था अब रूस और चीन से कर रहा है. पाकिस्तान अपनी सैन्य
आपूर्ति की निर्भरता अमरीका पर कम करना चाहता है. टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टिट्यूट के अनुसार अमरीका और पाकिस्तान
के बीच का हथियारों का सौदा एक अरब डॉलर से फिसलकर पिछले साल 2.1 करोड़
डॉलर तक पहुंच गया है.
पूर्वी रूस और साइबेरिया में इस महीने की
शुरुआत में चीनी सेना एक युद्धाभ्यास में शामिल हुई. इसमें चीनी सेना के
साजो-सामान भी शामिल हुए थे. इसे 1981 के बाद का सबसे बड़ा सैन्य अभ्यास
बताया जा रहा है.
दोनों देशों के इस सैन्य अभ्यास को चीन और रूस की नई रणनीतिक जुगलबंदी
के तौर पर देखा जा रहा है. पश्चिम के कई पर्यवेक्षकों ने तो इस युद्धाभ्यास
को अमरीका के ख़िलाफ़ रूस और चीन की साझी तैयारी के तौर पर पेश किया.
कहा जा रहा है कि अमरीका ने चीन के ख़िलाफ़ जो ट्रेड वॉर शुरू किया और रूस के
ख़िलाफ़ जो आर्थिक प्रतिबंध लगा रखे हैं, वैसे में दोनों देशों का साथ आना
लाजिमी है.
चीन और रूस के बीच पिछले 25 सालों में संबंधों में
गर्माहट आई है. हालांकि दोनों देशों में 1960 और 1970 के दशक में लड़ाई भी
हुई है. सोवियत संघ के आख़िरी सालों से दोनों देशों की क़रीबी बढ़ने लगी
थी.
आज की तारीख़ में दोनों देशों के बीच रणनीतिक साझेदारी है.
दूसरे विश्व युद्ध के बाद दोनों देशों ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद
में अमरीका और उसके सहयोगियों को रोकने के लिए साथ मिलकर कई बार वीटो पावर
का इस्तेमाल किया है.
दूसरे विश्व युद्ध की समाप्ति के बाद रूस और
चीन का वो पक्ष कई बार खुलकर सामने आया है कि दुनिया बहुध्रुवीय रहे.
मध्य-पूर्व में जब अमरीका, ईरान को लेकर कठोर होता है तो रूस और चीन दोनों
मिलकर उदार रुख़ का परिचय देते हैं.