Tuesday, September 17, 2019

चर्चा में रहे लोगों से बातचीत पर आधारित साप्ताहिक कार्यक्रम

भारत सरकार ने कहा है कि कश्मीर का विशेष दर्जा हटाए जाने के बाद से सुरक्षा बलों की कार्रवाई में एक भी व्यक्ति की जान नहीं गई है. सरकार का कहना है कि सरकार विरोधी प्रदर्शनकारियों द्वारा किए गए पत्थरबाज़ी में असरार सहित दो व्यक्तियों की मौत हुई है.
सरकार के मुताबिक़, इस दौरान चरमपंथियों ने तीन और लोगों की हत्या कर दी है.
लेकिन कई लोगों का कहना है कि सरकार ने अपने 'आधिकारिक आंकड़ों' में हाल के दिनों में हुई उनके कई क़रीबी रिश्तेदारों की अप्राकृतिक मौतों को शामिल नहीं किया है.
इनमें से एक रफ़ीक़ शागू ने बीबीसी को बताया कि वह नौ अगस्त को श्रीनगर के बेमीना इलाक़े में स्थित अपने दोमंज़िला घर में अपनी पत्नी फ़हमीदा बानो के साथ चाय पी रहे थे. उसी समय पड़ोस में प्रदर्शनकारियों और सुरक्षा बलों के बीच संघर्ष शुरू हो गया.
उन्होंने कहा कि आंसू गैस से उनका घर भर गया और फ़हमीदा का दम घुटने लगा.
उन्होंने बताया, "उसने मुझे बताया कि उसे सांस लेने में समस्या हो रही है. ऐसे में मैं उसे अस्पताल ले गया. वह मुझसे पूछने लगी 'मुझे क्या हो रहा है' और बहुत डरी हुई थी. डॉक्टरों ने बहुत प्रयास किया लेकिन उसे बचाया नहीं जा सका."
बानो के मेडिकल रिपोर्ट में बताया गया कि विषाक्त गैस के संपर्क में आने के कारण उनकी मौत हुई. उनके पति अब अपनी पत्नी की मौत की जाँच की मांग को लेकर अदालत में एक याचिका दायर करने की योजना बना रहे हैं.
श्रीनगर के सफकदल इलाक़े में 60 साल के मोहम्मद अय्यूब ख़ान की मौत की परिस्थितियां भी बहुत हद तक बानो से मिलती जुलती हैं.
अय्यूब ख़ान के दोस्त फ़य्याज़ अहमद ख़ान ने बताया कि 17 अगस्त को वो उसे इलाक़े से गुज़र रहे थे तभी इलाक़े में सुरक्षाबलों और प्रदर्शनकारियों के बीच झड़पें शुरू हो गईं.
उन्होंने बीबीसी को बताया कि उन्होंने ख़ान के पांव के पास आंसू गैस के दो कैन गिरते देखे. उनके दोस्त को अस्पताल ले जाया गया लेकिन डॉक्टरों ने कहा कि अस्पताल पहुंचने से पहले ही उनकी मौत हो चुकी थी. परिवार को अभी तक उनकी मौत की मेडिकल रिपोर्ट नहीं दी गई है.
पुलिस ने बताया कि यह एक अफ़वाह है कि आंसू गैस के संपर्क में आने के कारण ख़ान की मौत हुई.
क्षेत्र में लॉकडाउन और लगातार कर्फ्यू जैसी स्थिति के बावजूद सरकार और सुरक्षा बलों के ख़िलाफ़ प्रदर्शन की घटना हुई हैं जो अक्सर हिंसक हो गई हैं.
अस्पतालों ने हताहतों की संख्या के बारे में चुप्पी साध रखी है. घायल होने वाले कई लोग उचित चिकित्सा सेवा के लिए नहीं गए क्योंकि उन्हें आशंका थी कि प्रदर्शन में शा​मिल होने के कारण उन्हें गिरफ्तार किया जा सकता है.
माना जा रहा है कि सरकार ने पहले ही कार्यकर्ताओं, स्थानीय राजनेताओं और व्यापारियों सहित हज़ारों लोगों को हिरासत में ले रखा है. इनमें से अधि​कांश को राज्य के बाहर जेलों में रखा गया है.
हालांकि, अभी यह आकलन करना मुश्किल है कि कितने लोग मारे गए हैं या घायल हुए हैं. यह साफ़ है कि कश्मीर में पूर्व में हुई हिंसा के मुक़ाबले यह बहुत छोटा है.
राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने संवाददाताओें को बताया, "2008, 2010 और 2016 में हुई हिंसक वारदातों में भारी संख्या में लोगों की जान गई थी. उनकी तुलना में तो इस बार बहुत कम हिंसा हुई है."
उन्होंने कहा, "किसी भी व्यक्ति को नुक़सान पहुंचाए बिना धीरे-धीरे सामान्य स्थिति बहाल करने के लिए सभी सुरक्षा बल दिन-रात काम कर रहे हैं."
हालांकि, संचार सेवा ठप्प रहने और कठोर सैन्य के सख़्त रवैये के कारण लोगों का ग़ुस्सा पूरी तरह से सामने नहीं आ पा रहा है.
यह स्पष्ट नहीं है कि कश्मीर में लगाया गया प्रतिबंध कब पूरी तरह से हटाया जाएगा और पाबंदी हटाने के बाद क्या होगा.